अशोक चक्रधर भैया ने क्रोध अहंकार और गन्ने के जूस को आधारित कर एक कविता लिखी हमने भी उसका जवाब अपने दिवानिया स्टाइल में दिया। जो नीचे प्रस्तुत हैं।
श्याम का जवाब ,
मन्ने भी दे दो भैया,
झटपट गन्ने का जूस।
पीलिया को भी पिलिओ भैया ,
ये ठंडा गन्ने का जूस।
उदा दे ये भैया अहंकार ,
और क्रोध का भी फ्यूज।
मन्ने भी दे दो भैया ,
झटपट गन्ने का जूस।
अशोक चक्रधर जी की कविता
श्याम का जवाब ,
मन्ने भी दे दो भैया,
झटपट गन्ने का जूस।
पीलिया को भी पिलिओ भैया ,
ये ठंडा गन्ने का जूस।
उदा दे ये भैया अहंकार ,
और क्रोध का भी फ्यूज।
मन्ने भी दे दो भैया ,
झटपट गन्ने का जूस।
अशोक चक्रधर जी की कविता
अहंकार में आकर बढ़ता है,
क्रोध सबसे जल्दी सीढ़ी चढ़ता है।
क्रोध सबसे जल्दी सीढ़ी चढ़ता है।
चढ़ता ही जाए
बढ़ता ही जाए
तो लाल से हो जाता है
ज़हरीला नीला,
नीचे उतरे तो लाल से पीला।
बढ़ता ही जाए
तो लाल से हो जाता है
ज़हरीला नीला,
नीचे उतरे तो लाल से पीला।
उस पीली आग को नहीं चाहिए
ज़रा सी भी फूस,
पीलिया को चाहिए
गन्ने का जूस!
ज़रा सी भी फूस,
पीलिया को चाहिए
गन्ने का जूस!
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