श्रद्धांजलि हुल्लड़ मुरादाबादी
ओह! हुल्लड़ जी गए।
सहज हास्य के ऐसे रचनाकार जल्दी जन्म नहीं लेते।
मैंने उनके साथ कम से कम हज़ार कविसम्मेलनों में तो भाग लिया ही होगा। यादें रह रह कर घुमड़ रही हैं। आंखें नम हैं। देशभर के अनेक शहरों-कस्बों और बैंकाक, नेपाल, हांगकांग की यात्राओं के अनंत संस्मरण हैं मेरे पास। कल से स्मृतियों का चलचित्र जारी है।
मैंने उनके साथ कम से कम हज़ार कविसम्मेलनों में तो भाग लिया ही होगा। यादें रह रह कर घुमड़ रही हैं। आंखें नम हैं। देशभर के अनेक शहरों-कस्बों और बैंकाक, नेपाल, हांगकांग की यात्राओं के अनंत संस्मरण हैं मेरे पास। कल से स्मृतियों का चलचित्र जारी है।
चित्र न होते तो भरोसा मुझे भी नहीं होता कि मैंने 'हज्जाम की हजामत' के रचनाकार की तसल्लीबक्श हजामत की थी एक बार।
छायाकार मीनाक्षी पायल से मुझे कुछ चित्र मिले हैं। ये सिर्फ़ फोटो शूट नहीं है दोस्तो। दोस्ती की अनन्यता है। मैं उन्हें किसी कविसम्मेलन के लिए तैयार कर रहा था। उनके बहाने अपना एक छिपा हुआ कौशल दिखा रहा हूं। वैसे साहस उनका था कि एक अनाड़ी से ब्लेड फिरवा लिया।
यादों के आफ्टरशेव कोलोन सा एक शेर है उनका--
मैयत पे मेरी आके
कुछ लोग ये कहेंगे
सचमुच मरा है हुल्लड़
या ये भी चुटकुला है!
कुछ लोग ये कहेंगे
सचमुच मरा है हुल्लड़
या ये भी चुटकुला है!
काश! चुटकुला ही होता।
उन्होंने मृत्यु से संबंधित अभिव्यक्तियां अनेक तरह से की हैं। काका जी के दिवंगत होने पर उन्होंने काका के ही अंदाज़ में एक कुंडलिया रची थी--
गए शरद, परसाई जी, अब काका की मौत,
अरी मौत क्यों हो गई, हास्य-व्यंग्य की सौत?
हास्य-व्यंग्य की सौत कि तुझको रहम न आया,
इतनी जल्दी इन तीनों का विकिट गिराया।
कह 'हुल्लड़' अब मनहूसों को लेकर जाना,
इस क्रिकेट में मेरा नंबर नहीं लगाना।
अरी मौत क्यों हो गई, हास्य-व्यंग्य की सौत?
हास्य-व्यंग्य की सौत कि तुझको रहम न आया,
इतनी जल्दी इन तीनों का विकिट गिराया।
कह 'हुल्लड़' अब मनहूसों को लेकर जाना,
इस क्रिकेट में मेरा नंबर नहीं लगाना।
हालांकि उन्होंने ये भी कहा--
सबको इस रजिस्टर पर हाज़िरी लगानी है,
मौत वाले दफ़्तर में छुट्टियां नहीं होतीं।
बूंद को समन्दर में, जिसने पा लिया 'हुल्लड़'
साहिलों से फिर उसकी दूरियां नहीं होतीं।
मौत वाले दफ़्तर में छुट्टियां नहीं होतीं।
बूंद को समन्दर में, जिसने पा लिया 'हुल्लड़'
साहिलों से फिर उसकी दूरियां नहीं होतीं।
साहित्य के साहिलों से उनकी दूरियां कभी नहीं रहेंगी।
आज उन्हें बड़े आदर और सम्मान के साथ विदा किया गया। इस क्षति की कोई पूर्ति नहीं हो सकती।
जो नहीं जानते, उन्हें बता दूं कि उनकी महत्वपूर्ण कृतियां हैं--
हज्जाम की हजामत
इतनी ऊंची मत छोडो
क्या करेगी चांदनी
यह अंदर की बात है
त्रिवेणी
हुल्लड़ का हुल्लड़
तथाकथित भगवानों के नाम
अच्छा है पर कभी कभी
हुल्ल्ड़ के कहकहे
हुल्लड़ की हरकतें
हुल्लड़ सतसई
हुल्लड़ हज़ारा
मैं भी सोचूं तू भी सोच
दमदार और दुमदार दोहे
हुल्लड की श्रेष्ठ हास्य व्यंग रचनाएं
इतनी ऊंची मत छोडो
क्या करेगी चांदनी
यह अंदर की बात है
त्रिवेणी
हुल्लड़ का हुल्लड़
तथाकथित भगवानों के नाम
अच्छा है पर कभी कभी
हुल्ल्ड़ के कहकहे
हुल्लड़ की हरकतें
हुल्लड़ सतसई
हुल्लड़ हज़ारा
मैं भी सोचूं तू भी सोच
दमदार और दुमदार दोहे
हुल्लड की श्रेष्ठ हास्य व्यंग रचनाएं
उन्हें अनेक पुरस्कार और सम्मान मिले, जैसे--
कलाश्री पुरस्कार
ठिठोली पुरस्कार
महाकवि निराला सम्मान
अट्टहास साहित्यकार सम्मान
काका हाथरसी सम्मान हास्य रत्न
कलाश्री पुरस्कार
ठिठोली पुरस्कार
महाकवि निराला सम्मान
अट्टहास साहित्यकार सम्मान
काका हाथरसी सम्मान हास्य रत्न
पुत्र नवनीत ने उनकी बहुत सेवा की। पिता काफी समय से बीमार चल रहे थे लेकिन पिछले माह उनकी तबीयत बहुत बिगड़ गई और उन्हें मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां से उन्होंने अंतिम विदाई ली।
वह 72 वर्ष के थे। भाभी कृष्णा चड्ढा. प्रिय नवनीत, सोनिया और मनीषा और पूरे परिवार के दुख में मेरी पूरी भागीदारी है। मन मुंबई में है। जल्दी आता हूं नवनीत। सबको धीर बंधाना।
उन्हें मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।
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